Mahakumbh 2025

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महाकुंभ

महाकुंभ का आयोजन चल रहा है, साधु संतों का जमावड़ा भी लगा हुआ है। संत अपने-अपने शिविरों में धूनी रमाए प्रभु की भक्ति में लीन है। 29 जनवरी को दूसरा अमृत स्नान होने जा रहा है। प्रयागराज प्रशासन के मुताबिक, इस अमृत स्नान में 8 करोड़ लोगों के शामिल होने का अनुमान है। बता दें कि अमृत स्नान पर पहला हक नागा साधुओं को दिया गया है। नागा साधु अपने अखाड़े के साथ महाकुंभ में कल्पवास कर रहे हैं।

प्रयागराज का अलग है महत्व

12 वर्षों बाद महाकुंभ आता है। ऐसे में माना जाता है कि महाकुंभ में देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व समेत तमाम देवता संगम स्नान के लिए आते हैं। कुंभ देश के महज चार जगहों और 5 नदियों के तट ही लगता है, जिसमें उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयागराज शामिल हैं। उज्जैन में क्षिप्रा नदी, नासिक में गोदावरी, हरिद्वार में गंगा और प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम है। इस कारण प्रयाग के महाकुंभ को ज्यादा अधिक महत्व दिया जाता है।

कौन-सा रूप धारण कर आते हैं देवी-देवता?

हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक, महाकुंभ जहां लगता है, उस धरती को काफी पवित्र माना जाता है। इस पवित्र धरती पर पांव रखने मात्र से इंसान के पाप धुल जाते हैं। हर कुंभ मेले में देवी-देवता भी साधु-संतों का आशीर्वाद लेने धरती पर आते हैं। माना जाता है कि ये देवी-देवता नागा साधुओं का रूप धर अमृत स्नान करते हैं। जब नागा साधुओं की टोली चलती है तो वे भी इसी में शामिल हो जाते हैं और शिव शंभू की जय-जयकार करते है।

मिल जाए ये चीजें तो…

इस दौरान अगर उनके हाथों से फूल-माला, भभूत या कोई प्रसाद मिल जाए तो माना जाता है कि दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है। साथ ही उसके सारे पाप धुल जाते है और वह मृत्यु के पश्चात स्वर्गवासी बनता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)





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