राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भले ही प्रत्यक्ष राजनीति या किसी दल का काम करने का दावा नहीं करता है, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को सत्ता से दूर करने में संघ का बड़ा योगदान है। आरएसएस के जानकार दिलीप देवधर जिन्होंने अब तक आरएसएस पर 46 किताबें लिखी हैं, उनका कहना है कि इस बार नई रणनीति के साथ जो कार्य किया गया, उसमें स्वयंसेवकों को नया अनुभव भी मिला है। हरियाणा विधानसभा के चुनाव, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जिस रणनीति के तहत कार्य किया गया था, उसी रणनीति से दिल्ली में माइक्रो मैनेजमेंट के तहत कार्य किया गया। आरएसएस के स्वयंसेवकों ने लोकसभा चुनाव के बाद से ही दिल्ली में तैयारी शुरू कर दी थी लेकिन पिछले 100 दिनों मे संघ ने इस तरीके से कार्य किया कि आम आदमी पार्टी को सत्ता से दूर होना पड़ा।
1 लाख से ज्यादा बैठकें आयोजित हुई
हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव में सफलता मिलने के बाद RSS एवं उसके सहयोगी संगठनों ने वही फार्मूला दिल्ली में अपनाया है। आरएसएस और उसकी सहयोगी संगठनों ने लगभग 1 लाख से ज्यादा बैठकें दिल्ली में आयोजित की। ये बैठकें 10-15 लोगों के समूह में हुआ करती थी, जिसे टोली बैठक कहा जाता है। संघ के शब्दों में,संघ एवं उसके सहयोगी 36 संगठनों ने छोटी-छोटी टोलियां बनाकर महाराष्ट्र, हरियाणा की तर्ज पर ही दिल्ली चुनाव की बागडोर संभाली। दिल्ली में संघ एवं उसके सहयोगी संगठनों के लगभग चार से पांच लाख स्वयंसेवक चुनावी मैदान में डटे हुए थे। स्वयंसेवकों के पास चुनाव की पूरी वोटरों कि सूची है कि कौन सा वाटर कहां रहता है। पुराने पते के वोटर जो नए पते पर घर शिफ्ट कर चुके हैं उन्हें ढूंढने की जवाबदारी भी संघ और उसके सहयोगी संगठनों ने उठाई थी।
4 से 5 लाख स्वयंसेवकों ने काम किया
संघ के जानकार दिलीप देवधर ने बताया कि दिल्ली बचाओ अभियान के बैनर तले शत प्रतिशत मतदान करें और बेहतर दिल्ली बेहतर भारत का नारा दिया गया। दिलीप देवधर ने जानकारी दी कि संघ के 32 के 32 संगठनों ने अपने स्तर पर कार्य किया। हर संगठन ने 7 से 10 लोगों की छोटी-छोटी टोलियां बनाई। लगभग 4 से 5 लाख स्वयंसेवकों ने दिन-रात काम किया। हर सीट के लिए 850 से 900 बैठकों का लक्ष्य रखा गया था, जिसे पूरा करना किसी भी तरीके से जरूरी था। संघ एवं उसके सहयोगी संगठनों ने लगभग 1 लाख ड्राइंग रूम की बैठक ली। सभी धार्मिक स्थलों पर भी संघ के सहयोगी धार्मिक संगठनों ने बैठकों का आयोजन किया। सुबह, शाम पार्क में भी छोटी-छोटी इकाइयों की बैठक ली गई। दलित बस्तियों को चिन्हित किया गया। संघ के सहयोगी संगठनों के दो-दो हजार कार्यकर्ता वहां पर प्रचार में जुटे हुए थे।
स्वयंसेवकों को ट्रेनिंग दी गई थी
दिलीप देवधर ने बताया कि संघ के सभी सहयोगी संगठनों ने चुनाव में इंडिपेंडेंट प्रचार को अंजाम दिया। बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, सहकार भारतीय, विश्व हिंदू परिषद, मजदूर संघ, किसान संघ जिसका जिसका कैचमेंट एरिया था वहां पर वह कार्य कर रहा था। सभी सहयोगी संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी सप्ताह में एक बार मिलते थे और अगले हफ्ते की रणनीति तय की जाती थी। मंदिर में काम करने वाला ग्रुप अलग था, दिल्ली में पार्क कल्चर है वहां पर पार्क वाला ग्रुप अलग था, घर में जाकर बात करने वाला ग्रुप वाला था। इनको ट्रेनिंग दी गई थी कि क्या बोलना है क्या नहीं बोलना है। कांग्रेस हिंदू-मुसलमान करेगी लेकिन हमें हिंदू मुसलमान नहीं करना है। इन लोगों को बताया गया था कि अन्ना हजारे के समय जो केजरीवाल थे और आज जो केजरीवाल है उनकी भूमिका बदल चुकी है। कल के और आज के केजरीवाल में जो अंतर है उसको फोकस किया गया। दिल्ली वैश्विक भारत की राजधानी है। दिल्ली भी ग्लोबल हिंदू राष्ट्र की खाड़ी होनी चाहिए, उसका पुराना वैभव प्राप्त करना है। इस लाइन में संघ ने कार्य किया।
लोगों को राष्ट्रहित की बातें बताई गईं
संघ ने प्लान किया था कि लोगों से राष्ट्रहित की बात करनी है और उन व्यक्तियों के घर पर कुछ खाना-पीना नहीं है। सिर्फ अपनी बात उनके सामने रखनी है और जब तक वह मोटिवेट नहीं हो जाते तब तक उनके संपर्क में रहना है। जब लगे कि वह व्यक्ति उनकी बातों से प्रभावित हो चुका है, मोटिवेट हो चुका है, कोई दिखावा नहीं किया जाए, कोई फोटो नहीं खींची जाये, सोशल मीडिया पर नहीं डाला जाये। इस तरीके से संघ ने एक-एक व्यक्ति से संपर्क करना शुरू किया। संघ ने जो माइक्रो मैनेजमेंट शुरू किया था, उसके तहत कोशिश थी कि दूसरी पार्टियां जो भी नैरेटिव सेट करती है उस नैरेटिव को हावी न होने दिया जाए। जनता में भ्रम पैदा ना हो, बुथ मजबूत किया जाए, मतदान प्रतिशत बढाया जाय, अपनी भारतीय विचारधारा और अपनी अस्मिता को तिलांजलि देने वालों को सबक सिखाएं, विश्व पटल पर भारत की आन बान शान बढ़ाने वालों और भारत की बदनामी करने वालों के बीच में अंतर को समझें और मतदान करें।