रेसिप्रोकल टैरिफ

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रेसिप्रोकल टैरिफ

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यानी भारत अमेरिकी पर जितना टैरिफ लगाता है, उतना ही अमेरिका भारत पर लगाएगा। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव ने महत्वपूर्ण मोड़ ले लिया है। हालांकि, ट्रंप की घोषणा के बावजूद भारतीय व्यापारिक जगत में चिंता का माहौल नहीं है। एसबीआई की रिसर्च यूनिट द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भले ही अमेरिका 15 से 20% तक टैरिफ लगाए, तो भी भारतीय निर्यात पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। इसमें सिर्फ 3 से 3.5 फीसदी की गिरावट का अनुमान है। भारत इस मामले में आशावादी बना हुआ है। निर्यात में विविधता लाकर, प्रोडक्ट्स में अधिक वैल्यू जोड़कर और अल्टरनेटिव ट्रेड रूट्स स्थापित करके इस नुकसान को कम किया जा सकता है।

रेसिप्रोकल टैरिफ क्या है?

पहले तो यह समझ लें कि टैरिफ क्या होता है। यह किसी दूसरे देश से आने वाले सामान पर लगाया जाने वाला टैक्स होता है, जिससे वे विदेशी प्रोडक्ट्स महंगे हो जाते हैं। रेसिप्रोकल का अर्थ होता है, ‘जैसा आप करेंगे, वैसा ही हम भी करेंगे।’ यानी दूसरा देश हम पर जितना टैक्स लगाएगा, हम भी उस पर उतना ही लगाएंगे। यह पॉलिसी आर्थिक संतुलन बनाए रखने के लिए अपनाई जाती है। इसके अपने फायदे-नुकसान हैं। व्यापार संतुलन बनाए रखने, स्थानीय उद्योगों की रक्षा करने और अनुचित बिजनेस कॉम्पीटिशन को रोकने के लिए रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया जाता है। ट्रंप का मानना है कि वैश्विक व्यापार में अमेरिका के साथ अनुचित व्यवहार हो रहा है। वे भारत जैसे देशों का उदाहरण भी देते हैं। ग्लोबल ट्रेड अलर्ट के अनुसार, ये देश 87 प्रतिशत आयात पर अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ की तुलना में 5 से 20 प्रतिशत अधिक टैरिफ लगाते हैं। 

भारत यूं निकाल रहा है तोड़

भारत की निर्यात रणनीति डेवलप हो रही है। हालांकि, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार बना हुआ है, जो वित्त वर्ष 2023-24 में कुल निर्यात का 17.7 प्रतिशत है। वैश्विक व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि भारत रणनीतिक रूप से किसी एक देश पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है। इस एप्रोच में यूरोप और मिडिल ईस्ट जैसे क्षेत्रों के साथ संबंधों को मजबूत करना शामिल है। वहीं, सप्लाई चेन नेटवर्क को अनुकूलित करना भी शामिल है। इसके अलावा भारत कच्चे माल के निर्यात से तैयार माल और उच्च-मूल्य वाले उत्पादों के निर्यात पर ध्यान केंद्रित कर रहा है- यह एक ऐसा प्रयास है, जो न केवल निर्यात राजस्व को बढ़ाता है, बल्कि बढ़ते टैरिफ के सामने भी प्रतिस्पर्धात्मकता सुनिश्चित करता है।

भारत की पॉलिसीज में हो रहे बदलाव

भारत की टैरिफ पॉलिसीज में हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण बदलाव देखे गए हैं। जबकि भारतीय आयात पर अमेरिकी टैरिफ अपेक्षाकृत स्टेबल रहे हैं। अमेरिकी सामानों पर भारत के टैरिफ विशेष रूप से अधिक अस्थिर रहे हैं, जो 2018 में 11.59 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 15.30 प्रतिशत हो गए हैं। यह भारत के अधिक मुखर व्यापार रुख को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य घरेलू उद्योगों की रक्षा करते हुए संबंधों को संतुलित करना है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने नवीनतम बयानों में से एक में यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका “रेसिप्रोकल” एप्रोच अपना रहा है, जो अनिवार्य रूप से अमेरिकी सामानों पर भारत के टैरिफ से मेल खाता है। 

क्यों नहीं पड़ेगा हम पर असर?

इन तनावों के बावजूद, भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने टैरिफ विवाद के महत्व को कम करके आंका है। उन्होंने इसे दोनों देशों के बीच चल रही चर्चाओं में एक नियमित विषय के रूप में बताया है। मिस्री ने संकेत दिया कि स्थिति संभावित रूप से व्यापार वार्ता में प्रगति का अवसर प्रदान कर सकती है, विशेष रूप से एक द्विपक्षीय समझौते के संबंध में जिस पर ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान चर्चा हुई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की सक्रिय व्यापार नीतियां, जिनमें निर्यात विविधीकरण, उच्च-मूल्य विनिर्माण और वैकल्पिक व्यापार मार्ग शामिल हैं, किसी भी संभावित नुकसान को ऑफसेट करने में मदद करेंगे।





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