ढोल बजाता सहरख्वां
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ढोल बजाता सहरख्वां

रमजान का महीना चल रहा है। मालूम हो कि रामजान के पाक महीने में सूरज के निकलने से लेकर सूरज के छिपने तक रोजेदारों को कुछ भी नहीं खाना चाहिए। रोजेदारों के लिए यह जरूरी होता है कि सूरज के निकलने से पहले वे कुछ भोजन कर लें, ताकी पूरे दिन भूखे रहने के लिए उन्हें उर्जा मिलती रहे। इसलिए लोग अल सुबह उठने के लिए अलार्म लगाते हैं या फिर वे मस्जिद के लाउडस्पीकर पर निर्भर रहते हैं। लेकिन इन सबके अलावा लोगों को सुबह उठाने की भूमिका ‘सहरख्वां’ की भी होती है। 

कौन होते हैं ‘सहरख्वां’

ये ‘सहरख्वां’ शहरों और कस्बों में ढोल या ड्रम लेकर सुबह निकलते हैं और उन्हें बजाते हुए लोगों को उठाने का काम करते हैं। दरअसल, यह कश्मीर की एक सदियों पुरानी संस्कृति है। यहां एक खास वर्ग पारंपरिक तरीके से ढोल या ड्रम बजाते हुए सड़कों या गलियों में निकलता है और अपने वाद्ययंत्र के माध्यम से लोगों को सहरी के वक्त नींद से जगाता है। ताकि लोग समय पर सहरी का सेवन कर सकें। इस काम को करने वालों को ‘सहरख्वां’ कहा जाता है। 

रामजान के पवित्र महीने में ‘सहरख्वां’ की होती है अहम भूमिका 

‘सहरख्वां’ को लेकर बरजुल्ला निवासी मोहम्मद शफी मीर ने बताया कि पवित्र महीने के दौरान ‘सहरख्वांओं’ की अहम भूमिका होती है। उन्होंने कहा, “रमज़ान में सुबह उठने में काफी मुश्किलें होती हैं। हम रात साढ़े 10 बजे के आसपास ‘तरावीह’ (रमज़ान में पढ़ी जाने वाली लंबी नमाज़) समाप्त करते हैं और जब हम सोने जाते हैं, तब तक आधी रात हो चुकी होती है। चार घंटे बाद सेहरी और फ़ज्र (सुबह की नमाज़) के लिए फिर से उठान काफी थका देने वाला होता है।

1 महीने में हो जाती है साल भर की कमाई

प्रत्येक ‘सहरख्वां’ के पास एक या दो मोहल्ले होते हैं। कुछ लोगों के लिए यह आजीविका का स्रोत है। उनमें से कई लोग रमजान के लिए 11 महीने तक इंतजार करते हैं, क्योंकि इस महीने होने वाली कमाई से उनके परिवार का पूरे साल का खर्च चलता है। कुपवाड़ा जिले के कालारूस के अब्दुल मजीद खान ने कहा, ‘‘हम दूरदराज के इलाके से हैं और यही मेरी आजीविका है। मैं साल के बाकी दिनों में मजदूरी करता हूं, लेकिन उन 11 महीनों में होने वाली कमाई रमजान के दौरान होने वाली कमाई से भी कम है।’’ खान 20 वर्षों से रमजान के महीने में ढोल बजाकर लोगों को जगाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनका काम सुबह तीन बजे शुरू होता है और पांच बजे समाप्त होता है। खान ने कहा, ‘‘रमज़ान के अंत में लोग हमें उदारतापूर्वक दान देते हैं।’’

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