Panchayat
Image Source : INSTAGRAM
पंचायत की कास्ट।

कुछ कहानियां अपनी चमक-धमक से नहीं, बल्कि अपनी सादगी और सच्चाई से दर्शकों के दिलों में जगह बनाती हैं। प्राइम वीडियो की वेब सीरीज ‘पंचायत’ ऐसी ही एक दुर्लभ रचना है, जो न सिर्फ मनोरंजन करती है, बल्कि ग्रामीण भारत की जमीन से जुड़ी संवेदनाओं को भी बेहद सटीकता से उकेरती है। इसके हर सीजन को  IMDb पर शानदार रेटिंग मिली। पहले सीजन ने 9 की रेटिंग हासिल की थी जो आम बात नहीं है। अब जबकि सीजन 4 की रिलीज (24 जून) सिर पर है, यह शो सिर्फ एक वेब सीरीज नहीं, बल्कि भारतीय ओटीटी संस्कृति का एक प्रतीक बन चुका है, तो आखिर क्या है पंचायत को इतना खास और अनदेखा सफल बनाने वाला फॉर्मूला? आइए समझते हैं।

सादगी में छिपी गहराई

‘पंचायत’ की सबसे बड़ी ताकत उसकी सादगी है। ये किसी हाई-ऑक्टेन ड्रामा या ग्लैमर से भरी कहानी नहीं है। इसके बजाय, यह एक छोटे गांव फुलेरा की रोजमर्रा की जिंदगी को बड़े ही प्यारे, संवेदनशील और हास्यपूर्ण अंदाज में दर्शाती है। शो यह दिखाने की कोशिश नहीं करता कि ग्रामीण जीवन कितना कठिन या दयनीय है, बल्कि यह दिखाता है कि वहां भी संवेदनाएं हैं, रिश्ते हैं, राजनीति है और ढेर सारी इंसानियत भी।

पात्र जो किरदार नहीं, परिवार बन जाते हैं

सचिव जी (जितेंद्र कुमार), प्रधान जी (रघुबीर यादव), मंजू देवी (नीना गुप्ता), प्रह्लाद चा (फैसल मलिक), विकास (चंदन रॉय), रिंकी (संजेता) और विनोद, ये सभी किरदार अब दर्शकों के लिए कहानी के हिस्से नहीं, बल्कि अपनों जैसे हो गए हैं। इनकी केमिस्ट्री, संवाद और भावनात्मक गहराई इस सीरीज को जीवंत बनाते हैं। यहां हर किरदार की अपनी कहानी है, कोई अकेलेपन से जूझ रहा है तो कोई सत्ता और जिम्मेदारी की कशमकश में फंसा है और यही उन्हें असली बनाता है।

अलग तरह का हास्य

‘पंचायत’ का हास्य उसका सबसे सुंदर पहलू है। यह आपको जोर-जोर से हंसाने की कोशिश नहीं करता, बल्कि अपनी परिस्थितिजन्य कॉमेडी और छोटे-छोटे संवादों से धीमी मुस्कान देता है। चाहे वह ‘बनराकस’ की बेमतलब हरकतें हों या प्रह्लाद चा की चुप्पी में छिपी पीड़ा, यह शो आपको भावनाओं की एक ऐसी यात्रा पर ले जाता है जहां आप हंसते भी हैं और नम आंखों के साथ गहरी सोच में भी डूबते हैं। 

लोकजीवन की झलक

‘पंचायत’ गांव की दुनिया को नाटकीय या फिल्मी नहीं बनाता। यह दिखाता है कि गांव में पंचायत कैसे चलती है, कैसे बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत समस्याएं सुलझाई जाती हैं। यह लोक राजनीति, सामाजिक समीकरण और स्त्री-पुरुष की भूमिकाओं को बिना भाषणबाज़ी के दर्शाता है। यही यथार्थ इसे खास बनाता है।

पंचायत की संस्कृति में राष्ट्रीय पहचान

पंचायत मीम कल्चर का भी हिस्सा बन गई है। इसके संवाद, ‘ईमानदारी से काम करने का सबसे बड़ा नुकसान यही है कि…’, या ‘हम हैं रिंकिया के पापा’, अब आम बोलचाल का हिस्सा हैं। इस शो ने उन लोगों को भी कनेक्ट किया है जो गाँवों से दूर शहरों में रहते हैं, और उन्हें अपने बचपन, अपने लोगों की याद दिलाई है।

हर सीजन के साथ बढ़ता स्तर

तीनों पिछले सीज़न हर तरह से बेहतरीन रहे हैं। सीज़न 3 ने जहां इमोशनल ग्राफ को ऊँचाई दी, वहीं सीजन 4 के ट्रेलर और प्रचार से यह साफ है कि अब कहानी और भी गहराई में जाएगी। सीजन 4 का इंतज़ार इसलिए भी है क्योंकि अब दर्शक सिर्फ कहानी नहीं देखना चाहते, वे अपने प्रिय पात्रों की जिंदगी में आगे क्या होता है, यह जानना चाहते हैं।

प्रशंसा और पुरस्कारों की झड़ी

‘पंचायत’ को फिल्मफेयर ओटीटी अवार्ड्स और IFFI जैसे मंचों पर सर्वश्रेष्ठ वेब सीरीज़ का खिताब मिलना इस बात का प्रमाण है कि यह सिर्फ़ दर्शकों के दिलों में ही नहीं, आलोचकों की नजरों में भी अव्वल है। टीवीएफ ने इसकी सफलता को तमिल और तेलुगु में रीमेक कर के थलाइवेटियां पालयम और शिवरापल्ली के रूप में प्रस्तुत किया, एक और प्रमाण कि इसकी लोकप्रियता भाषा की सीमाओं से परे है।





Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version