तूतनखामुन का मास्क और...- India TV Hindi
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तूतनखामुन का मास्क और अपनी रानी अंकेसेनामुन के साथ उनकी तस्वीर।

मिस्र की रेतीली जमीन पर स्थित ‘वैली ऑफ किंग्स’ में मिली एक कब्र ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। हालांकि इस कब्र की खोज करने वाले कई लोगों के लिए जिंदगी नरक बन कर रह गई, और एक के बाद एक उनकी दर्दनाक मौत हुई। यह कहानी है तूतनखामुन की, प्राचीन मिस्र का एक ऐसा राजा जिसकी कब्र 3300 साल बाद 1922 में मिली। ब्रिटिश पुरातत्वविद् हॉवर्ड कार्टर ने जब इस कब्र को खोला, तो अंदर सोने-चांदी के खजाने ने दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया। लेकिन जल्द ही अफवाहें फैलीं कि राजा का श्राप काम कर रहा है, और कई खोजकर्ता रहस्यमयी तरीके से मरने लगे। क्या सच में राजा का श्राप काम कर रहा था, या ये सिर्फ संयोग था? आइए, समझने की कोशिश करते हैं।

मिस्र के इतिहास में क्यों अहम हैं तूतनखामुन?

तूतनखामुन प्राचीन मिस्र के 18वें राजवंश के राजा थे। वह बहुत कम उम्र में ही राजा बन गए थे इसलिए उन्हें ‘बॉय किंग’ भी कहा जाता है। उनका जन्म लगभग 1341 ईसा पूर्व में हुआ था। वे मूल रूप से तूतनखातेन नाम से जाने जाते थे, लेकिन पिता अखेनातेन के बाद उन्होंने नाम बदल लिया। अखेनातेन ने मिस्र के पुराने देवताओं को नकारकर सिर्फ सूर्य देवता अटेन की पूजा शुरू की थी, जिसे ‘अमरना काल’ कहा जाता है। यह समय मिस्र के लिए उथल-पुथल भरा था जब मंदिर बर्बाद हो गए थे, और लोग भूखे मर रहे थे।

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तूतनखामुन के मकबरे के अंदर चैंबर का दृश्य कुछ ऐसा था।

तूतनखामुन ने मात्र 9 साल की उम्र में गद्दी संभाली और उनके शासनकाल में सब कुछ बदल गया। उन्होंने पुराने देवताओं, खासकर अमुन की पूजा को बहाल किया। वह राजधानी को अमरना से वापस थेब्स लेकर आए। ‘रेस्टोरेशन स्टेला’ नामक एक शिलालेख में लिखा है कि कैसे उन्होंने मंदिरों को दोबारा बनवाया, पुजारियों को दान दिया और मिस्र उनके शासनकाल में पटरी पर आया। उन्होंने अपनी सौतेली बहन अंकेसेनामुन से शादी की थी। उनकी दो बेटियां हुईं, लेकिन दोनों बेहद कम उम्र में ही मर गईं।

बीमारियों और चोट ने ली तूतनखामुन की जान

डीएनए टेस्ट से पता चला कि तूतनखामुन के माता-पिता रक्त संबंधी थे, जिसके चलते उन्हें कई बीमारियां थीं। उनके पैर टेढ़े-मेढ़े थे और उनकी हड्डियां बेहद कमजोर थी। अपनी बीमारी की वजह से वह मात्र 19 साल की उम्र में 1323 ईसा पूर्व मर गए। वैज्ञानिकों के मुताबिक, मलेरिया के बार-बार हुए हमलों और पैर में चोट लगने से तूतनखामुन की जान गई थी। मौत के बाद तूतनखामुन की लाश को ममी बनाकर ‘वैली ऑफ द किंग्स’ (राजाओं की घाटी) में दफनाया गया। लेकिन उनकी कब्र छोटी और साधारण थी, क्योंकि उनकी मौत अचानक हुई थी। तूतनखामुन की मौत के बाद उनकी कब्र के अंदर मौजूद खजाने को चोरों ने दो-तीन बार लूटा भी, लेकिन ज्यादातर सामान बच गया।

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लॉर्ड कार्नार्वनस, उनकी बेटी लेडी एवलिन और खोजकर्ता हॉवर्ड कार्टर।

…फिर 3300 साल बाद मिली राजा की कब्र

सालों तक पुरातत्वविदों ने ‘वैली ऑफ द किंग्स’ में खुदाई की, लेकिन तूतनखामुन की कब्र नहीं मिली। 1907 में ब्रिटिश लॉर्ड कार्नार्वन ने हॉवर्ड कार्टर को फंडिंग दी। कार्टर पहले से ही मिस्र के खजानों के बारे में दिलचस्पी रखते थे। 1917 से उन्होंने व्यवस्थित खुदाई शुरू की, क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध की वजह से इसमें काफी रुकावट आ रही थी। 4 नवंबर 1922 को कार्टर के मजदूरों ने रामेसेस छठे के मकबरे के पास मजदूरों की पुरानी झोपड़ियों के नीचे सीढ़ी जैसी एक चीज पाई। कार्टर ने उत्साहित होकर लॉर्ड कार्नार्वन को तार भेजा।

23 नवंबर को कार्नार्वन अपनी बेटी लेडी एवलिन के साथ पहुंचे। 26 नवंबर को दरवाजा तोड़ा गया। कार्टर ने दरवाजे के अंदर मोमबत्ती जलाकर झांका और कहा, ‘हां, यहां अद्भुत चीजें हैं!’ अंदर एंटीचैंबर था, जिसमें सोने के बर्तन, रथ और मूर्तियां भरे हुए थे। चैंबर की सील पर तूतनखामुन का नाम था। तूतनखामुन के कब्र की खुदाई 10 साल तक चली। उसकी कब्र के अंदर कुल मिलाकर 5398 चीजें मिलीं जिनमें सोने का चेहरे वाला मास्क (११ किलो सोना), तीन ताबूत (सबसे अंदर वाला शुद्ध सोने का), गहने, हथियार, रथ, खिलौने, यहां तक कि राजा के जूते और लिनन के कपड़े।

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तूतनखामुन की ममी का मुआयना करते खोजकर्ता हॉवर्ड कार्टर।

…और मौतों के श्राप ने अपना काम कर दिया?

कार्टर की खोज ने पूरी दुनिया में धूम मचा दी, लेकिन उसके बाद खोजकर्ताओं की मौतों ने लोगों में डर फैला दिया। 5 अप्रैल 1923 को लॉर्ड कार्नार्वन का निधन हो गया। उन्हें पहले मच्छर ने काटा, फिर रेजर से कटने के कारण इन्फेक्शन हुआ और उसके बाद निमोनिया ने जकड़ लिया। वे पहले से कमजोर थे लेकिन अखबारों में ‘फिरौन के श्राप’ की खबरों ने खूब सुर्खियां बटोरीं। मशहूर लेखक आर्थर कोनन डॉयल ने कहा कि पुजारियों ने ‘दुष्ट आत्माओं’ को मकबरे की सुरक्षा के लिए लगाया था, लेकिन कब्र में कोई श्राप वाला शिलालेख नहीं मिला। हालांकि मौतों का सिलसिला नहीं रुका, और कुछ प्रमुख लोगों की मौत यूं हुई:

  • 1923: अमेरिकी पर्यटक जॉर्ज जे गूल्ड – बुखार से।
  • 1924: रेडियोलॉजिस्ट आर्चिबाल्ड रीड – कैंसर से।
  • 1928: कार्टर के साथी ए.सी. मेस – निमोनिया से।
  • 1929: कार्नार्वन का सौतेला भाई मर्विन हर्बर्ट – मलेरिया से।
  • 1929: कार्टर के सेक्रेटरी रिचर्ड बेथेल – संदिग्ध हार्ट अटैक।
  • 1939: खुद कार्टर – कैंसर से, 64 साल की उम्र में।

वैज्ञानिकों ने यूं झुठलाई राजा के श्राप की कहानी

हालांकि भले ही कब्र की खोज से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण लोग दुनिया से जल्द ही विदा हो गए, लेकिन वैज्ञानिकों ने इसे महज संयोग माना। इसके पीछे तर्क यह था कि कुल ५८ लोगों ने कब्र को खोला था लेकिन इनमें से सिर्फ 8 ऐसे थे जिनकी मौत इसको खोजे जाने के 12 साल के अंदर हुई। उनमें से तमाम लोगों ने लंबी उम्र पाई। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह श्राप नहीं, बल्कि संयोग था। कार्नार्वन पहले से बीमार थे। कुछ मौतें फंगस ‘एस्परजिलस फ्लेवस’ से हो सकती थीं, जो सील की गई कब्रों में उगता है और सांस की बीमारी पैदा करता है। खुद कार्टर ने श्राप से मौत की बातों को ‘बकवास’ करार दिया था। इस तरह देखा जाए तो जहां कुछ लोगों का मानना है कि कब्र के साथ वाकई कोई श्राप था तो दूसरी तरफ वैज्ञानिक ऐसा कुछ नहीं मानते हैं।

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