Jagdeep Dhankhar
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जगदीप धनखड़

झुंझुनूं: सोमवार शाम को देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की खबर जैसे ही राजस्थान स्थित उनके गांव में पहुंची तो लोग भावुक हो गए। धनखड़ का गांव राजस्थान के झुंझुनूं जिले के किठाना में है। हर गली, हर चौराहे पर लोगों के बीच यही चर्चा होती रही कि अचानक ऐसा क्या हुआ जो गांव के लाड़ले ने पद से इस्तीफा दे दिया। भावनात्मक माहौल के बीच लोग उनके कार्यकाल को याद करते रहे और कहा कि उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

2022 में उपराष्ट्रपति बनने के बाद आए थे गांव

गांव के बुजुर्गों से लेकर युवाओं और बच्चों तक सभी ने एक ही स्वर में कहा, “हमारे लिए तो वे हमेशा उपराष्ट्रपति ही रहेंगे।” बच्चों ने उन्हें प्रेरणा का स्रोत बताया, तो बुजुर्गों ने माटी से उनके जुड़ाव को याद किया। अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति बनने के बाद जगदीप धनखड़ गांव आए थे। उस समय उन्होंने ठाकुर जी मंदिर और जोड़िया बालाजी मंदिर में दर्शन कर आशीर्वाद लिया था। ग्रामीणों को आज भी वह दृश्य याद है, जब गांव का बेटा देश का दूसरा सर्वोच्च पद संभालने के बाद आशीर्वाद लेने आया था।

गांव से रहा सीधा जुड़ाव, पत्नी निभाती रहीं संवाद की कड़ी

हालांकि व्यस्तता के चलते वे गांव कम आ पाए, लेकिन गांव से उनका जुड़ाव कभी कम नहीं हुआ। ग्रामीणों ने बताया कि उनकी पत्नी डॉ. सुदेश धनखड़ अक्सर गांव आती रहीं और स्थानीय लोगों से विकास योजनाओं को लेकर चर्चा करती थीं। गांव के बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित करना हो या महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना, उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।

विकास की सौगातें और पहचान दिलाई

किठाना गांव को उपराष्ट्रपति धनखड़ ने न सिर्फ देश-दुनिया में पहचान दिलाई, बल्कि विकास की दिशा में भी कई अहम सौगातें दीं। सरपंच प्रतिनिधि हीरेंद्र धनखड़ के अनुसार उनके प्रयासों से गांव में सरकारी कॉलेज, खेल स्टेडियम, आयुर्वेदिक अस्पताल भवन जैसे कई कार्य हुए। जोड़िया बालाजी मंदिर में निर्माण कार्य भी उनके परिवार के सहयोग से ही चल रहा है। वहीं, गांव से नेशनल हाईवे जोड़ने के लिए सर्वे कार्य भी शुरू हुआ।

मार्च से स्वास्थ्य था खराब, परिवार देता रहा अपडेट

ग्रामीणों के अनुसार, पिछले कुछ महीनों से उपराष्ट्रपति धनखड़ का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था। उनकी पत्नी डॉ. सुदेश धनखड़ गांव आकर ग्रामीणों को स्वास्थ्य की स्थिति से अवगत कराती थीं। पहले जहां वे कई दिन गांव में रुकती थीं, वहीं अब एक-दो दिन में ही लौट जाती थीं।

गांव के लिए गौरव, पीढ़ियों तक याद रहेगा योगदान

गांववासियों ने कहा कि भले ही उन्होंने पद छोड़ा है, लेकिन किठाना के लिए वे हमेशा उपराष्ट्रपति रहेंगे। उन्होंने जो पहचान, सम्मान और विकास दिया है, वह पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा।





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