
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ एक बार फिर सियासी हलचल का केंद्र बन गई है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खिलाफ शहर में लगे पोस्टरों ने न केवल राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है, बल्कि एक गंभीर सवाल को जन्म दिया है कि आखिर अखिलेश यादव अपनी पत्नी डिंपल यादव पर मौलाना साजिद रशीदी के आपत्तिजनक बयान पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? सोशल मीडिया पर भी इस बात की चर्चा जोरों पर है कि आखिर अखिलेश यादव को किस बात का डर सता रहा है? आइए, समझते हैं।
क्या लिखा है लखनऊ की दीवारों पर चस्पा पोस्टरों में?
बीजेपी के प्रदेश महामंत्री और MLC सुभाष यदुवंश द्वारा लगाए गए इन पोस्टरों में लिखा है, ‘पत्नी के अपमान पर चुप रहने वाले प्रदेश की बहन-बेटियों की सुरक्षा कैसे करेंगे?’ यह सवाल न केवल अखिलेश की निजी छवि पर प्रहार करता है, बल्कि उनकी राजनीतिक रणनीति और समाजवादी पार्टी के भविष्य को भी कटघरे में खड़ा करता है। बीजेपी इस मुद्दे को लेकर हमलावर है और अखिलेश यादव से लगातार सवाल पूछ रही है। सोशल मीडिया पर भी इस बात को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि जब सभी पक्षों के लोग मौलाना के बयानों की आलोचना कर रहे हैं तो अखिलेश चुप क्यों हैं?
लखनऊ में सुभाष यदुवंश के नाम से ये पोस्टर लगे हैं।
आखिर ऐसा क्या कहा था मौलाना साजिद रशीदी ने?
मौलाना साजिद रशीदी, जो ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं, ने हाल ही में एक टीवी डिबेट के दौरान डिंपल यादव के मस्जिद दौरे और उनके पहनावे पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने डिंपल के कपड़ों को इस्लामिक मर्यादाओं के खिलाफ बताते हुए उनकी तस्वीरों का हवाला देकर अभद्र टिप्पणी की, जिसने सियासी गलियारों में तूफान खड़ा कर दिया। इस बयान के बाद लखनऊ के विभूतिखंड थाने में मौलाना के खिलाफ FIR दर्ज की गई, और बीजेपी सहित NDA सांसदों ने संसद परिसर में इसका विरोध किया। लेकिन इस पूरे विवाद में सबसे ज्यादा चर्चा अखिलेश यादव की चुप्पी को लेकर हो रही है।
रणनीतिक मजबूरी का हिस्सा है अखिलेश की चुप्पी?
लोग सवाल उठा रहे हैं कि अखिलेश यादव, जो हर मंच पर सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, इस मामले में खामोश क्यों हैं? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह चुप्पी उनकी रणनीतिक मजबूरी का हिस्सा है। समाजवादी पार्टी का मुख्य वोट बैंक यादव, मुस्लिम, और OBC समुदायों पर आधारित है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटर सपा की रीढ़ माने जाते हैं, और मौलाना साजिद रशीदी जैसे धार्मिक नेताओं का प्रभाव इस समुदाय के एक वर्ग पर पड़ता है। ऐसे में मौलाना के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया देना सपा के लिए जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि यह उनके मुस्लिम वोट बैंक को नाराज कर सकता है।
डिंपल यादव और अखिलेश यादव।
2027 में सत्ता में वापसी की तैयारी में है सपा
सपा की इस रणनीति को समझने के लिए हमें 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के संदर्भ को देखना होगा। 2024 के लोकसभा चुनावों में सपा ने 37 सीटें जीतकर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था, और अब पार्टी 2027 में सत्ता में वापसी की तैयारी में है। अखिलेश इस समय I.N.D.I.A. को मजबूत करने और छोटे-मझोले नेताओं को पार्टी में शामिल करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। ऐसे में, मुस्लिम वोट बैंक को नाराज करना उनके लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। माना जा रहा है कि इसीलिए अखिलेश ने इस मुद्दे पर फिलहाल चुप रहने का फैसला किया है।
BJP ने अखिलेश की चुप्पी पर सवाल उठाए
बीजेपी ने इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लखनऊ में लगे पोस्टर और संसद में एनडीए सांसदों के प्रदर्शन ने अखिलेश की चुप्पी को उनके खिलाफ हथियार बना दिया। बीजेपी सांसद बांसुरी स्वराज ने सवाल उठाया, ‘अखिलेश यादव अपनी पत्नी के अपमान पर चुप क्यों हैं?’ वहीं, बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने मस्जिद को ‘सपा कार्यालय’ की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। बीजेपी का यह हमला केवल डिंपल के अपमान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सपा की तुष्टिकरण की राजनीति पर सवाल उठाने की कोशिश है।
डिंपल यादव ने बीजेपी को दी ये नसीहत
वहीं, डिंपल यादव ने इस मामले में सधा हुआ जवाब देते हुए बीजेपी को मणिपुर हिंसा का मुद्दा उठाने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी को महिला सम्मान की इतनी ही चिंता है, तो मणिपुर के मसले पर भी आंदोलन करना चाहिए। हालांकि आरोप और प्रत्यारोप के बीच सियासी जानकारों का मानना है कि चुप रहने से अखिलेश की छवि एक कमजोर नेता की बन रही है। यह चुप्पी उनकी छवि को नुकसान पहुंचा रही है और बीजेपी को सपा पर हमला करने का मौका दे रही है। मौजूदा हालात को देखते हुए कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में अखिलेश की चुप्पी से जुड़ा सवाल अभी लंबे समय तक गूंजता रहेगा।