
मालेगांव ब्लास्ट केस में बरी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर।
मुंबई: साल 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में 7 लोगों को बरी करने वाली एक स्पेशल कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के इस दावे को खारिज कर दिया कि दक्षिणपंथी चरमपंथी समूह अभिनव भारत ने विस्फोट को अंजाम दिया था। विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने अपने 1,000 से ज्यादा पन्नों के फैसले में साफ कहा कि अभिनव भारत को केंद्र सरकार ने आतंकवादी संगठन के तौर पर प्रतिबंधित नहीं किया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘यहां तक कि अभिनव भारत ट्रस्ट, संस्था, संगठन, फाउंडेशन भी प्रतिबंधित नहीं है।’ जज ने यह भी बताया कि महाराष्ट्र ATS ने अपनी जांच में दावा किया था कि सभी आरोपी अभिनव भारत के सदस्य थे और यह एक संगठित आपराधिक गिरोह था।
‘अभिनव भारत को आज तक प्रतिबंधित नहीं किया गया’
अदालत ने ATS के इस दावे को गलत ठहराते हुए कहा, ‘यह उल्लेख करना आवश्यक है कि अभिनव भारत एक प्रतिबंधित संगठन नहीं है। आज तक इसे गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम के तहत प्रतिबंधित नहीं किया गया है।’ फैसले में यह भी कहा गया कि अगर केंद्र सरकार को लगता है कि कोई संगठन गैरकानूनी है, तो वह उसे अधिसूचना के जरिए प्रतिबंधित कर सकती है। लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया, ‘आज तक ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है, जिससे पता चले कि अभिनव भारत ट्रस्ट या अभिनव भारत संगठन को केंद्र सरकार ने किसी अधिसूचना के माध्यम से प्रतिबंधित या गैरकानूनी घोषित किया है।’
‘ट्रस्ट डीड में कुछ भी गलत या गैरकानूनी नहीं था’
कोर्ट ने यह भी बताया कि जब 2007 में अभिनव भारत ट्रस्ट का गठन हुआ था, तब इसे पुणे चैरिटी कार्यालय में रजिस्टर किया गया था। ट्रस्ट डीड में लिखे उद्देश्यों को देखने से पता चलता है कि इसमें कुछ भी गलत या गैरकानूनी नहीं था। ट्रस्ट डीड के मुताबिक, अभिनव भारत का मकसद देशभक्ति और धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा देना था। कोर्ट ने कहा, ‘इसमें (ट्रस्ट डीड में) उल्लिखित उद्देश्य कानूनी हैं। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, समीर कुलकर्णी और सुधाकर चतुर्वेदी अभिनव भारत ट्रस्ट के सदस्य थे।’
अदालत ने दावों को सबूतों के अभाव में खारिज किया
अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने 2007 में हिंदू राष्ट्र की स्थापना का प्रचार करने के लिए अभिनव भारत नाम की संस्था बनाई थी, क्योंकि इसके सदस्य भारतीय संविधान से नाखुश थे। लेकिन अदालत ने इन दावों को सबूतों के अभाव में खारिज कर दिया। अदालत ने यह भी कहा कि पूरे केस के दौरान, जांच के शुरुआती चरण से लेकर अंतिम सुनवाई तक, अभिनव भारत शब्द का इस्तेमाल सिर्फ सामान्य संदर्भ या आम बोलचाल में किया गया। (PTI)